
दुर्गा विसर्जन 26 अक्टूबर, 2020 (सोमवार)
दुर्गा पूजा उत्सव का समापन दुर्गा विर्सजन के साथ होता है। दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त प्रात:काल या अपराह्न काल में विजयादशमी तिथि लगने पर शुरू होता है। इसलिए प्रात: कालया अपराह्न काल में जब विजयादशमी तिथि व्याप्त हो, तब मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाना चाहिए। कई सालों से विसर्जन प्रात:काल मुहूर्त में होता आया है लेकिन यदि श्रवण नक्षत्र और दशमी तिथि अपराह्न काल में एक साथ व्याप्त हो, तो यह समय दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के लिए श्रेष्ठ है। देवी दुर्गा के ज्यादातर भक्त विसर्जन के बाद ही नवरात्रि का व्रत तोड़ते हैं। दुर्गा विसर्जन के बाद विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री राम ने राक्षस राज रावण को मारा था। वहीं देवी दुर्गा ने इस दिन असुर महिषासुर का वध किया था। दशहरा के दिन शमी पूजा, अपराजिता पूजा और सीमा अवलंघन जैसी परंपराएं भी निभाई जाती है। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार ये सभी परंपरा अपराह्न काल में मनानी चाहिए।
दुर्गा विसर्जन शुभ मुहूर्त –
दुर्गा विसर्जन तिथि – 26 अक्टूबर 2020
दुर्गा विसर्जन शुभ मुहूर्त – 06:33 से 08:46 तक
दशमी तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 25, 2020 को 07:41 बजे से
दशमी तिथि समाप्त – अक्टूबर 26, 2020 को 09:00 बजे तक
सिंदूर उत्सव
दुर्गा पूजा के दौरान सिंदूर उत्सव पश्चिम बंगाल में मनाई जाने वाली एक अनोखी परंपरा है। विजयादशमी के दिन दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है। इस अवसर पर विवाहित महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और शुभकामनाएं देती हैं। सिंदूर उत्सव को सिंदूर खेला भी कहते हैं।
विसर्जन पूजा विधि
कन्या पूजन के पश्चात एक पुष्प एवं चावल के कुछ दाने हथेली में लें और संकल्प लें।
घट यानि कलश में स्थापित नारियल को प्रसाद स्वरूप स्वयं भी ग्रहण करें और परिजनों को भी दें।
घट के पवित्र जल का पूरे घर में छिडकाव करें और फिर सम्पूर्ण परिवार इसे प्रसाद स्वरुप ग्रहण करें।
घट में रखें सिक्कों को अपने गुल्लक में रख सकते हैं, बरकत होती है।
सुपारी को भी परिवार में प्रसाद रूप में बांटें।
माता की चौकी से सिंहासन को पुनः अपने घर के मंदिर में उनके स्थान पर ही रख दें।
श्रृंगार सामग्री में से साड़ी और जेवरात आदि को घर की महिला सदस्याएं प्रयोग कर सकती हैं।
श्री गणेश की प्रतिमा को भी पुनः घर के मंदिर में उनके स्थान पर रख दे।
चढ़ावे के तौर पर सभी फल, मिष्ठान्न आदि को भी परिवार में बांटें।
चौकी और घट के ढक्कन पर रखें चावल एकत्रित कर पक्षियों को दें।
माँ दुर्गे की प्रतिमा अथवा तस्वीर, घट में बोयें गए जौ एवं पूजा सामग्री, सब को प्रणाम करें और समुन्द्, नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें।
विसर्जन के पश्चात एक नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपडें को किसी ब्राह्मण को दान करें।
