
हनुमान जयंती व्रत
हनुमान जयंती भगवान हनुमानजी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भक्तगण बजरंगबली के नाम का व्रत रखते हैं। प्रत्येक वर्ष हनुमान जयंती चैत्र मास (हिन्दू माह) की पूर्णिमा को मनाई जाती है, हालाँकि कई स्थानों में यह पर्व कार्तिक मास (हिन्दू माह) के कृष्णपक्ष के चौदवें दिन भी मनाई जाती है।
हनुमान जयंती का महत्व
भगवान राम के परम भक्त कहे जाने वाले भगवान हनुमान के जन्मदिन का विशेष महत्व बताया जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। इसी दिन भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले प्रभु हनुमान ने अंजना माता की कोख से जन्म लिया था।
संकटमोचन भगवान हनुमान के बारे में मानते हैं कि इन्हे बस मन से याद कर लेने भर से इंसान के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। महाबली हनुमान के भक्तों को विश्वास है कि अगर उनके सिर पर हनुमान जी का हाथ है तो उन्हें कोई दुःख छू भी नहीं सकता है।
ऐसे में हनुमान जयंती के दिन भक्त हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए पूरे दिन श्रद्धा भाव से व्रत रखते हैं और भगवान की पूजा अर्चना करते हैं।
इस दिन के बारे में भक्तों के बीच ऐसी मान्यता है कि हनुमान जयंती के दिन जो भी व्यक्ति सच्चे मन से 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ कर लेता है उसपर भगवान अपनी कृपा अवश्य बनाये रखते हैं।
हनुमान जयंती के दिन मंदिरों में विशेष पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है।
भक्त संकटमोचन को प्रसन्न करने के लिए उनपर सिन्दूर चढ़ाते हैं और सुंदर कांड का पाठ करते हैं।
श्री हनुमान जयंती में कई जगहों पर मेला भी लगता है।
व्रत एवं पूजा विधि
आइए जानते हैं कि हनुमान जयंती को कैसे मनाया जाता है।
इस दिन तात्कालिक तिथि (राष्ट्रव्यापिनि) को लिया जाता है।
व्रत की पूर्व रात्रि को ज़मीन पर सोने से पहले भगवान राम और माता सीता के साथ-साथ हनुमान जी का स्मरण करें।
प्रात: जल्दी उठकर दोबार राम-सीता एवं हनुमान जी को याद करें।
जल्दी सबेरे स्नान ध्यान करें।
अब हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प करें।
इसके बाद, पूर्व की ओर भगवान हनुमानजी की प्रतिमा को स्थापित करें।
अब विनम्र भाव से बजरंगबली की प्रार्थना करें।
आगे षोडशोपाचार की विधि विधान से श्री हनुमानजी की आराधना करें।
जानिए कैसे हुआ भगवान हनुमान का जन्म
पवनपुत्र हनुमान जी की माता का नाम अंजनी और पिता का नाम वानरराज केसरी है। प्रभु हनुमान के जन्म का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है। बताया जाता है कि ऋषि मतंग के कहने पर एक बार माता अंजना और वानरराज केसरी वेंकटाचल पर्वत पर गए जहाँ उन्होंने पुष्पकरणी तीर्थस्थान में स्नान किया और फिर वहां स्थित वराह तथा भगवान वेंकटेश को प्रणाम किया।
इसके बाद आकाशगंगा तीर्थ में जाकर उन्होंने वायु देव की आराधना की। बताया जाता है कि माता अंजनी द्वारा एक हजार वर्ष तक तपस्या करने पर वायु देवता उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उनके समक्ष प्रकट होकर उनसे कोई भी वर मांगने के लिए कहा। तब माता अंजनी ने उनसे संतान प्राप्ति की इच्छा प्रकट की। इसी वरदान के बाद में माता अंजनी के यहां संकटमोचन हनुमानजी ने जन्म लिया।
जानिए केसरी नंदन कैसे बने भगवान हनुमान?
भगवान हनुमान का एक नाम केसरी नंदन मारुति भी है। हालाँकि इनका नाम हनुमान कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी बताई जाती है। अपनी बाल्यावस्था में एक दिन मारुति नंदन अपनी नींद से जागे और उन्हें बहुत तेज भूख लग गई। पास ही में उन्हें एक पेड़ पर लाल रंग का पका हुआ फल नज़र आया। इसे खाने के लिए वो निकल पड़े।
लेकिन असल में वो जिसे पका हुआ फल समझ रहे थे वो दरअसल सूर्यदेव थे। ये दिन अमावस्या का था और सूर्य को राहु ग्रहण लगाने वाले थे। लेकिन राहु ऐसा कर पाते उससे पहले ही हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया। जिससे राहु को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर क्या हो रहा है? इसके बाद उन्होंने इंद्र देवता से सहायता मांगी।
इंद्र देव ने भगवान हनुमान जी से बात की लेकिन बार-बार अनुरोध करने पर भी हनुमान जी ने सूर्य देव को मुक्त नहीं किया। इसके बाद इंद्र ने गदा से हनुमान जी के मुख पर प्रहार किया। जिससे सूर्यदेव मुक्त तो हो गए लेकिन मारुति बेहोश होकर आकाश से धरती की तरफ गिर गए।
पवन देव इस बात से बेहद क्रोधित हुए और मारुति को अपने साथ एक गुफा में लेकर के अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मच उठी। इस विनाश को रोकने के लिए सभी देव इंद्र देव से आग्रह करने लगे कि वह क्रोध त्याग दें और पृथ्वी पर वापस आ जाए।
इसके बाद सभी देव वरदान स्वरूप अलग-अलग शक्तियां मारुती नंदन को प्रदान करते हैं और उन्हें हनुमान के नाम से पूजनीय होने का वरदान देते हैं। इसी दिन से मारुति का नाम हनुमान पड़ा।
हनुमान जयंती व्रत कथा
माना जाता है माता अंजनी के उदर से हनुमान जी पैदा हुए। उन्हें बड़ी जोर की भूख लगी हुई थी इसलिये वे जन्म लेने के तुरंत बाद आकाश में उछले और सूर्य को फल समझ खाने की ओर दौड़े उसी दिन राहू भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिये आया हुआ था लेकिन हनुमान जी को देखकर उन्होंने इसे दूसरा राहु समझ लिया। तभी इंद्र ने पवनपुत्र पर वज्र से प्रहार किया जिससे उनकी ठोड़ी पर चोट लगी व उसमें टेढ़ापन आ गया इसी कारण उनका नाम भी हनुमान पड़ा। इस दिन चैत्र शुक्ल पक्ष माह की पूर्णिमा होने से इस तिथि को हनुमान जयंती के रुप में मनाया जाता है। मंगलवार के दिन भगवान श्री हनुमान जी का जन्म दिवस होने के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है ।
