
योग और भोग
एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों को बुलाकर एक प्रश्न किया कि मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार, मेरा राजा बनने का योग था और मैं राजा बना| किंतु उसी घड़ी में अनेक और बच्चों का जन्म भी हुआ होगा जो राजा नहीं बन सके ऐसा क्यों?
राजा के इस प्रश्न का ज्योतिष उत्तर नहीं दे सके कि सबके भाग्य अलग अलग क्यों है| अचानक एक बूढ़ा व्यक्ति खड़ा हुआ और बोला आप यहां से कुछ दूर घने जंगल में जाओ, तो वहां आपको एक महात्मा मिलेंगे वह आपके प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं|
यह बात सुनकर राजा की जिज्ञासा बड़ी और वह इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए घने जंगल में चले गए| जंगल में राजा ने जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठकर अंगार (गरम कोयला) खाने में व्यस्त हैं| डरते हुए राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा तो महात्मा ने क्रोधित होकर कहा- तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है मैं भूख से पीड़ित हूं| यहां से कुछ दूर पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा है वही इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं|
राजा की जिज्ञासा और बढ़ गई और वह पहाड़ी मार्ग की ओर चल दिए| जैसे ही राजा को दूसरे महात्मा मिले तो महात्मा को देखकर राजा हैरान हो गए| दृश्य ही कुछ ऐसा था| वह महात्मा अपना ही मास चिमटे से नोच कर खा रहा था| राजा को देखते ही उस महात्मा ने भी डांटते हुए कहा – मैं भूख से बेचैन हूं मेरे पास इतना समय नहीं है| आगे जाओ पहाड़ियों के उस पार एक आदिवासी गांव में एक बालक जन्म लेने वाला है, जो कुछ ही देर तक जिंदा रहेगा वही बालक तेरे प्रश्न का उत्तर दे सकता है|
यह सुनकर राजा बहुत बेचैन हो गए किंतु उनकी जिज्ञासा इतनी प्रबल हो गई के कुछ भी हो जाए मैं अपने प्रश्न का उत्तर ढूंढ कर रहूंगा|कठिन मार्ग पर चलते हुए किसी तरह सुबह होने तक राजा उस गांव में पहुंचे| पूछताछ करने पर उस दंपति के घर पर पहुंचकर अपनी सारी बात कही| जैसे ही उस घर में बच्चा हुआ तो दंपत्ति ने बालक को राजा के सामने प्रस्तुत किया| राजा को देखते ही बालक ने हंसते हुए कहा राजन! मेरे पास भी समय नहीं है किंतु अपना उत्तर सुन लो| तुम, मैं और वे दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों भाई व राजकुमार थे|
एक बार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में भटक गए| 3 दिन तक भूखे-प्यासे भटकते रहे| चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली, जिससे हमने 4 रोटियां बनाई और अपनी अपनी रोटियां लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख-प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा आ गए| अंगार खाने वाले भैया से उन्होंने कहा बेटा मैं 10 दिन से भूखा हूं| अपनी रोटी में से मुझे भी कुछ दे दो मुझ पर दया करो| इतना सुनते ही भैया गुस्से से भड़क उठे और बोले यदि यह रोटी मैं तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या अंगारे खाऊंगा? चलो भागो यहां से|
वह महात्मा जी फिर मांस खाने वाले भैया के निकट आए उनसे भी अपनी बात कही किंतु उन भैया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा की बड़ी मुश्किल से यह रोटी तो हमें मिली है, यदि यह मैं तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या अपना मांस नोंच कर खाऊंगा ? भूख से लाचार वह महात्मा मेरे पास भी आए मुझसे भी रोटी मांगी किंतु मैंने भी भूख में धैर्य खो कर कह दिया कि चलो आगे बढ़ो तुम्हें रोटी देकर मैं क्या भूखा मरू?
फिर आखरी आशा लिए वह महात्मा आपके पास भी आए और आपसे भी रोटी मांगी| उनकी दशा पर दया करते हुए आपने खुशी से अपनी आधी रोटी आदर के साथ उस महात्मा को दे दी| रोटी का वह टुकड़ा पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और जाते हुए बोले तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा| बालक ने कहा- उस घटना के आधार पर ही हम अपना अपना जीवन भोग रहे हैं|धरती पर एक समय में अनेकों फूल खिलते हैं किंतु सबके फल आकार, स्वाद व गुण में भिन्न-भिन्न होते हैं| इतना कहकर वह बालक मर गया| राजा अपने महल में पहुंचा और सोचने लगा एक ही मुहूर्त में अनेकों बच्चे जन्म लेते हैं किंतु सब अपना किया, दिया, लिया ही पाते हैं|
सीख –
जैसे हम कर्म करते हैं वैसे ही योग बनते हैं यही जीवन चक्र है|
