
बहुमत का बोलबाला
एक बार एक उल्लू और हंस थे । उल्लू एक पेड़ पर बैठा था । अचानक एक हंस भी आकर पर बैठ गया । हंस ने कहा, उफ! कैसी गर्मी है। सूरज आज बड़े प्रचंड से चमक रहा है।
उल्लू बोला, सूरज! यह सूरज क्या चीज है? इस वक्त गर्मी है-यह तो ठीक है पर वह तो अंधेरा बढ़ने पर भी होती है।
हंस ने समझाने की कोशिश की, ‘सूरज आसमान में है। उसकी रोशनी दुनिया में फैलती है, उसी से गर्मी भी फैलती है।’
उल्लू हँसा, ‘तुमने रोशनी नाम की एक ओर चीज बतलाई। तुम्हें किसने बहका दिया है?’
हंस ने समझाने की बहुत कोशिश की, मगर बेकार।
आखिर उल्लू बोला, ‘अच्छा चलो उस वटवृक्ष तक, वहाँ मेरे सैकड़ों अकलमन्द जाति भाई रहते हैं। उनसे फैसला करा लो।’
हंस ने उल्लू की बात मान ली। जब दोनों उल्लूओं के समुदाय में पहुंचे तो उस उल्लू ने सबको सुना कर कहा, ‘यह हंस कहता है कि आसमान में इस वक्त सूरज चमक रहा है। उसकी रोशनी दुनिया में फैलती है। तमाम उल्लू हँस पड़े, क्या बाहियात बात है। भाई, न सूरज कोई चीज है, न रोशनी कोई वस्तु। इस बेवकूफ हंस के साथ तुम तो बेवकूफ न बनो।’
सब उल्लू उस हंस को मारने झपटे। गनीमत यह थी कि उस वक्त दिन था, इसलिए हंस सही-सलामत बचकर उड़ गया। उड़ते हुए उसे मन में सोचा, बहुमत सत्य को असत्य तो नहीं कर सकता लेकिन जहाँ उल्लुओं का बहुमत हो, वहाँ किसी समझददार के लिए सत्य को उसके गले उतार सकना बड़ा मुश्किल है।
इस को आज के राजनीति परिवेश में देखिए। कोई भी सीधा सादा व्यक्ति चारों तरफ उन उल्लुओं से घिरा है जो सत्य को कभी भी असत्य में बदल सकते हैं।
कभी आपको नहीं लगता हमारे देश की बिल्कुल और की की तरह हो गई है जहां केवल बहुमल का बोलबाला है अब तो बहुमल चाले सच्चा हो चाहे झूठा।
ऐसे ही आज के नेता हैं जो जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। बहुमत बनाने के लिए कुछ भी कर जाते हैं और उसी बहुमत के आधार पर देश की जड़ों को खोखला और जनता को भिखारी बनाते जा रहे हैं। swan की तरह उल्लुओं रूपी नेताओं से बचने के लिए जनता मारी-मारी भटक रही है। जनता की जरूरतों को पूर्ति कौन करेगा। जनता को खुद ही समझदार होना पड़ेगा।
