
गणेश जी की जन्म कथा
भगवान शिव के पुत्र प्रथम पूज्य गणेशजी का नाम लिए बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। कोई भी मंगल काम हो तो उससे पहले गणेश जी का नाम अवश्य ही लिया जाता है। गणेश जी का विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियों के साथ हुआ था। इनका नाम ऋद्धि और सिद्धि था। जहां सिद्धि ने क्षेम तो ऋद्धि ने लाभ नाम के पुत्र को जन्म दिया था। गणेश जी के पुत्रों को लोक-परंपरा में शुभ-लाभ के नाम से जाना जाता है। गणेश जी के जन्म की कथा बेहद ही रोचक है।
आइए श्री मंदिर पर पढ़ते है गणेशजी के जन्म की कथा।
जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार नंदी से माता पार्वती की किसी आज्ञा के पालन में ऋुटि हो गई। जिसके बाद माता से सोचा कि कुछ ऐसा बनाना चाहिए, जो केवल उनकी आज्ञा का पालन करें। ऐसे में उन्होंने अपने उबटन से एक बालक की आकृति बनाकर उसमें प्राण डाल दिए। कहते हैं कि जब माता पार्वती स्नान कर रही थीं तो उन्होंने बालक को बाहर पहरा देने के लिए कहा। माता पार्वती ने बालक को आदेश दिया था कि उनकी इजाजत के बिना किसी को अंदर नहीं आने दिया जाए।
कहते हैं कि भगवान शिव के गण आए तो बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इसके बाद स्वयं भगवान शिव आए तो बालक ने उन्हें भी अंदर नहीं जाने दिया। इस बात से भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। माता पार्वती जब बाहर आईं तो वह यह सब देखकर क्रोधित हुईं। उन्होंने उनके बालक को जीवित करने के लिए कहा। तब भगवान शिव ने एक हाथी का सिर बालक के धड़ से जोड़ दिया।
बालक गणेश को सभी देवताओं ने कई वरदान दिए। सभी गणों का स्वामी होने के कारण भगवान गणेश को गणपति कहा जाता है। गज (हाथी) का सिर होने के कारण इन्हें गजानन भी कहते हैं।
