
कालाष्टमी या कालभैरव अष्टमी पर ऐसे करे भैरव पूजा
कालाष्टमी को महाकाल अष्टमी, कालअष्टमी या भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है और हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दौरान इसे मनाया जाता है । कालाष्टमी पर व्रत किया जाता है. हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत किया जाता है. मान्यता है कि भगवान शिव इसी दिन भैरव के रूप में प्रकट हुए थे.,
श्री भैरव के भक्त वर्ष की सभी कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं. सबसे मुख्य कालाष्टमी जिसे कालभैरव जयन्ती के नाम से जाना जाता है, उत्तरी भारतीय पूर्णिमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में पड़ती है जबकि दक्षिणी भारतीय अमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार कार्तिक के महीने पड़ती है।
इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु भैरव नाथ की कथा पढ़कर उनका भजन करते हैं ऐसा कहा जाता हैं कि इस दिन पूजा करने वाले भक्तों को भैरव बाबा की कथा को जरूर सुनना चाहिए. ऐसा करने से आपके आस पास मौजूद नकारात्मक शक्तियों के साथ आर्थिक तंगी से जुझ रहे लोगों को भी राहत मिलती है।
।।व्रत कथा।।
शिव पुराण में ये कथा आई है, उसके अनुसार,
देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है. जवाब में दोनों ने स्वयं को सर्व शक्तिमान और श्रेष्ठ बताया, जिसके बाद दोनों में युद्ध होने लगा. इससे घबराकर देवताओं ने वेदशास्त्रों से इसका जवाब मांगा. उन्होंने बताया कि जिनके भीतर पूरा जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है वह कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव ही हैं.
ब्रह्मा जी का जो पांचवा मुख था वोह , यह मानने को तैयार नहीं था और उस मुख ने भगवान शिव के बारे में अपशब्द कहना शुरू कर दिए और वेदो की भी निंदा की , इससे वेद व्यथित हो गए. इसी बीच दिव्यज्योति के रूप में भगवान शिव प्रकट हो गए. ब्रह्मा जी आत्मप्रशंसा करते रहे और भगवान शिव को कह दिया कि तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो और ज्यादा रुदन करने के कारण मैंने तुम्हारा नाम ‘रुद्र’ रख दिया, तुम्हें तो मेरी सेवा करनी चाहिए.
इस पर भगवान शंकर नाराज हो गए और क्रोध में उन्होंने काल भैरव को उत्पन्न किया. भगवान शंकर ने भैरव को आदेश दिया कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो. यह बात सुनकर भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के वही पांचवा सिर काट दिया, जो भगवान शिव वेदो को अपशब्ध कह रहा था.
इसके बाद भगवान शंकर ने काल भैरव को काशी जाने के लिए कहा और ब्रह्म हत्या से मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता बताया. भगवान शंकर ने उन्हें काशी का कोतवाल बना दिया, आज भी काशी में काल भैरव कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं. विश्वनाथ के दर्शन से पहले इनका दर्शन होता है, अन्यथा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।
।।मान्यताए।।
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भैरव जी की पूजा से भूत, पिशाच दूर रहते हैं. सभी कष्ट दूर होते हैं. रुके हुए कार्य बनते जाते है। व कभी भी भय नहीं लगता किसी भी चीज़ से।
।। नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी पर शक्ति पूजा।।
नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी पर काल भैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। इस रात देवी काली के साथ काल भैरव की भी विशेष पूजा का विधान है। शक्ति पूजा करने से काल भैरव की पूजा का पूरा फल मिलता है। इस दिन व्रत करने वाले को फलाहार ही करना चाहिए।
मासिक कालाष्टमी 2020 की संक्षिप्त पूजा विधि
इस दिन भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए. कालाष्टमी के पावन दिन पर कुत्ते को जो की भैरव जी के वाहन है उस दिन उसको भोजन कराना चाहिए. ऐसा करने से भैरव बाबा प्रसन्न होते हैं और सभी इच्छाओं को पूरी करते हैं भैरव बाबा का वाहन काला स्वान ( कुत्ता ) होता हैं, इसलिए इस दिन काले कुत्ते को भोजन कराने से भैरव जी विशेष कृपा व फल की प्राप्ति भक्तों को होती हैं.
पूजा विधि
काल भैरव अष्टमी पर शाम को विशेष पूजा से पहले नहाएं और किसी भैरव मंदिर में जाएं। और ऐसा मंदिर ढूंढे जहाँ कोई पूजा न करता हो। ऐसा करने से बाबा भैरव की विशेष कृपा मिलती है व गुप्त शक्तिओ की प्राप्ति होती है।
सिंदूर, सुगंधित तेल व इतर से भैरव भगवान का श्रृंगार करें। लाल चंदन, चावल, गुलाब के फूल, जनेऊ, नारियल चढ़ाएं।
भैरव पूजा में ऊँ भैरवाय नम: बोलते हुए चंदन, चावल, फूल, सुपारी, दक्षिणा, नैवेद्य लगाकर धूप-दीप जलाएं।
तिल-गुड़ या गुड़-चने का भोग लगाएं। सुगंधित धूप बत्ती और सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद भैरव भगवान को प्रणाम करें।
बाबा भैरव को उड़द की दाल में बने गुल गुलेऔर गुड़ मिले दूध और पान का भोग लगाना न भूले यह बाबा को विशेष प्रिय है
इसके बाद भैरव भगवान के सामने धूप, दीप और कर्पूर जलाएं, आरती करें, प्रसाद ग्रहण करें। भैरव भगवान के वाहन कुत्तों को प्रसाद और रोटी खिलाएं।
भैरव भगवान के साथ ही शिवजी और माता-पार्वती की भी पूजा जरूर करे।
।।इस व्रत से दूर होते हैं रोग शोक और भय ।।
कालाष्टमी पर्व शिवजी के रुद्र अवतार कालभैरव के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट मिट जाते हैं और काल उससे दूर हो जाता है। इसके अलावा व्यक्ति रोगों से दूर रहता है। साथ ही उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
इस वर्ष दिसंबर २०२० में कालाष्टमी 7 दिसंबर को है जिसे महाकाल अष्टमी के नाम से जाना जाता है।
