
श्रीकृष्ण की शक्ति श्री राधारानी
भगवान् के दिव्य लीला विग्रहों का प्राकट्य ही वास्तव में आनंदमयी ह्लादिनी शक्ति के निमित्त से है. श्री भगवान् अपने निजानंद को परिस्फुट करने के लिए अथवा उसका नवीन रूप में आस्वादन करने के लिए ही स्वयं अपने आनंद को प्रेम विग्रहों के रूप में प्रकट करते हैं और स्वयं ही उनसे आनंद का आस्वादन करते हैं.
भगवान् के उस आनंद की प्रतिमूर्ति ही प्रेम विग्रह रूपा श्री राधारानी हैं और यह प्रेम विग्रह सम्पूर्ण प्रेमों का एकीभूत समूह है. अतएव श्री राधिकाजी प्रेममयी हैं और भगवान् श्रीकृष्ण आनंदमय हैं. जहाँ आनंद है वहीँ प्रेम है और जहाँ प्रेम है वहीँ आनंद है. आनंदरस सार का घनीभूत विग्रह श्री कृष्ण हैं और प्रेम रस सार की घनीभूत मूर्ती श्री राधा रानी हैं. अतएव श्री राधा और श्री कृष्ण का विछोह कभी संभव ही नहीं. न श्री राधा के बिना श्री कृष्ण कभी रह सकते हैं और न श्री कृष्ण के बिना श्री राधा जी.
श्री कृष्ण के दिव्य आनंद विग्रह की स्थिति ही दिव्य प्रेम विग्रह रूपा श्री राधा जी के निमित्त से है. श्री राधारानी ही श्री कृष्ण की जीवन रूपा हैं और इसी प्रकार श्री कृष्ण ही श्री राधा जी के जीवन हैं . दिव्य प्रेम रस सार विग्रह होने से ही श्री राधा रानी महाभाव रूपा है और वह नित्य निरंतर आनंदरससार रस राज अनंत ऐश्वर्य – अनंत सौन्दर्य माधुर्य लावण्य निधि सच्चिदानंद सान्द्रांग अविचिन्त्यशक्ति आत्मारामगणाकर्पी प्रियतम श्री कृष्ण को आनंद प्रदान करती रहती हैं. इस ह्लादिनी शक्ति की लाखों अनुगामिनी शक्तियां मूर्ति मति होकार प्रतिक्षण सखी – मंजरी – सहचरी – और दूती आदि रूपों से श्री राधा कृष्ण की सेवा किया करती हैं – श्री राधा कृष्ण को सूख पहुचाना और उन्हें प्रसन्न करना ही इनका एक मात्र कार्य होता है. इन्हीं का नाम गोपी जन है.
“जय जय श्री राधे”
