
कामाख्या मंदिर का रहस्य
कामाख्या मंदिर नीलाचल पर्वत या कामगिरी पर्वत पर गुवाहाटी शहर में पहाड़ी की ऊंची चोटी पर स्थित है, अनेक धार्मिक स्थलों में से एक है, जो असम राज्य के समृद्ध ऐतिहासिक विवरण की कहानी स्वयं कहता है। कामाख्या मंदिर का निर्माणकामा देवी कामाख्या या सती के लिए किया गया था जो देवी दुर्गा या देवी शक्ति के अनेक अवतारों में से एक थीं।

तंत्र-मंत्र साधना के लिए विख्यात कामरूप कामाख्या (गुवाहाटी) में शक्ति की देवी कामाख्या के मंदिर में प्रतिवर्ष होने वाले ‘अंबुवासी’ मेला एक तरह से कामरूप का कुंभ होता है जिसमें देशभर के साधु और तांत्रिक हिस्सा लेते हैं। शक्ति के ये साधक नीलाचल पहाड़ (जिस पर माँ कामाख्या का मंदिर स्थित है) की विभिन्न गुफाओं में बैठकर साधना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ‘अंबुवासी मेले’ के दौरान माँ कामाख्या रजस्वला होती हैं।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सौर आषाढ़ माह के मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय चरण बीत जाने पर चतुर्थ चरण में आद्रा पाद के मध्य में पृथ्वी ऋतुवती होती है। यह मान्यता है कि भगवान विष्णु के चक्र से सती के पार्थिव शरीर के 51 हिस्से हो गए और उनकी योनि नीलाचल पहाड़ पर गिरी जहां आज कामाख्या मंदिर स्थित है। इन 51 शक्तिपीठों में कामाख्या महापीठ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसलिए कामाख्या मंदिर में माँ की योनि की पूजा होती है। यही वजह है कि कामाख्या मंदिर के गर्भगृह के फोटो लेने पर पाबंदी है इसलिए तीन दिनों तक मंदिर में प्रवेश करने की मनाही होती है। चौथे दिन मंदिर का पट खुलता है और विशेष पूजा के बाद भक्तों को दर्शन का मौका मिलता है।
यह मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से कुछ किलो मीटर की दूरी पर है और यह पूरे साल दर्शकों के लिए खुला रहता है। कूच बिहार के राजा नर नारायण ने 1665 में इस मंदिर का दोबारा निर्माण कराया, जब इस पर विदेशी आक्रमणकारियों ने हमला कर नुकसान पहुंचाया। इस मंदिर में सात अण्डाकार स्पायर हैं, जिनमें से प्रत्येक पर तीन सोने के मटके लगे हुए हैं और प्रवेश द्वारा सर्पिलाकार है जो एक घुमावदार रास्ते से थोड़ी दूर पर खुलता है, जो विशेष रूप से मुख्य सड़क को मंदिर से जोड़ता है। मंदिर के शिल्पकला से बनाए गए कुछ पैनलों पर प्रसन्नता की स्थिति में कुछ हिन्दु देवी और देवताओं के चित्र हैं। कच्छुए, बंदर और बड़ी संख्या में कबूतरों ने इस मंदिर को अपना घर बनाया है तथा ये इसके परिसर में घुमते रहते हैं, जिन्हें मंदिर के प्राधिकारियों द्वारा तथा दर्शकों द्वारा भोजन कराया जाता है। मंदिर का शांत और कलात्मक वातावरण कुल मिलाकर दर्शकों के मन को एक अनोखी शांति देता है और उनके मन में एक सात्विक भावना उत्पन्न होती है, यही कारण है कि यहां काफी लोग आते हैं।

इसकी रहस्यमय भव्यता और देखने योग्य स्थान के साथ कामाख्या मंदिर न केवल असम बल्कि पूरे भारत का चकित कर देने वाला मंदिर है। वैसे भी कामाख्या मंदिर अपनी भौगोलिक विशेषताओं के कारण बेहतर पर्यटन स्थल है और सालभर लोगों का आना-जाना लगा रहता है। यहां के अंबुवासी मेले को असम की कृषि व्यवस्था से भी जोड़कर देखा जाता है। किसान पृथ्वी के ऋतुवती होने के बाद ही धान की खेती आरंभ करते हैं।
