
जानिए कैसे गुप्त नवरात्रों मे नवदुर्गा में इन 9 औषधियों का वास है
वर्ष में 4 बार नवरात्रि आती है. जिनमें से दो चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि होती हैं जिनके बारे में हम सभी जानते हैं लेकिन इसके पढ़ने वाली दो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है और 12 फरवरी 2021 से यह नवरात्रि अब आरंभ हो गई है। लेकिन आपको बता दें मां दुर्गा के नवरात्रों में नौ रूपों से अपने भक्तों का कल्याण कर उनके सारे संकट हर लेती हैं। नवदुर्गा में इन 9 औषधियों का वास है। इस बात का जीता जागता प्रमाण मौजूद है। संसार में उपलब्ध औषधियों को मां दुर्गा का रूप माना जाता है। यह नौ औषधियां समस्त प्राणी के रोग को हरने वाली है तो आइए जानते हैं इन दिव्य गुणों वाली औषधियो को जिन्हें मां दुर्गा कहा गया है।

नवरात्रा का प्रथम रूप शैलपुत्री यानी हरड़ का माना गया है। यह कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड है जो देवी शैलपुत्री का एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है जो 7 प्रकार की है पहली पथया जो हित करने वाली है कायस्थ जो शरीर को बनाए रखने वाली है हेमवती हिमालय पर होने वाली श्रेयसी शिव यानी कल्याण करने वाली चेतकी मतलब चित्त को प्रसन्न करने वाली अमृता यानि अमृत के समान
दूसरी है ब्रह्मचारिणी यानी ब्राह्मी इन्हें मां सरस्वती भी कहा जाता है। यह मन एवं मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करती हैं और मूत्र व गैस के रोगों में प्रमुख दवा है। अतः इन रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को ब्रहमचारी की आराधना करनी चाहिए।
तीसरी हैं देवी चंद्रघंटा यानी चंदुसुर यह नवरात्रि में तीसरा रूप है। इन्हें चंदुसुर कहा गया है यह ऐसा पौधा है जो धनिए के समान है। इसके पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है जो लाभदायक होती है। यह औषधि मोटापा कम करने में लोकप्रिय है। शरीर को शक्ति देने वाली ह्रदय रोगों को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है इसलिए इन बीमारी से पीड़ित लोगों को मां चंद्रघंटा की आराधना करनी चाहिए।
चौथा है कुष्मांडा यानी पेठा इस औषधि से पेठे की मिठाई बनाई जाती है इसलिए औषधि को पेठा कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार दूर कर पेट साफ करने में सहायक है और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए अमृत समान है। यह रक्तपित्त एवं गैस को दूर करता है इसलिए बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पेठे का उपयोग के साथ कुष्मांडा देवी की आराधना करनी चाहिए।
पांचवा स्कंदमाता यानी अलसी है जिन्हें पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि अलसी में विद्यमान है यह बात पित्त कफ रोकने नाशक है।
छठवां यानी कात्यायनी यानी मोइया इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अंबिका, अंबालिका और अंबा। इसके अलावा मोइया अर्थात मचिका भी कहते हैं। यह पित्त, अधिक विकार, कफ के रोगों का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी को इसका सेवन और कात्यानी माता की आराधना करनी चाहिए।
सातवां रूप है कालरात्रि यानी नागदौन यह जिसे महायोगिनी या महायोगेश्वरी भी कहा जाता है। नागदोन औषधि के रूप में मानी जाती है यह सभी प्रकार के रोगों की नाशक और सर्वत्र विजय दिलाने वाली, मन एवं समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर कर सकते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषयों को नाश करने वाली औषधि है और प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को मां कालरात्रि की आराधना करनी चाहिए
आठवां रूप है महागौरी यानी तुलसी। यह प्रत्येक घर में लगाई जाती है तुलसी के सात प्रकार होते हैं जिसमें सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र मौजूद है और यह सभी रक्त को साफ करते हैं और हृदय रोग का नाश करती है।
नवरूप है सिद्धिदात्री यानी शतावरी यह बुद्धि बल वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। रक्त व रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक हृदय के बल देने वाली औषधि है। पीड़ित व्यक्ति अगर सिद्धिदात्री का नियम पूर्वक सेवन करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उस व्यक्ति को मां सिद्धिदात्री की आराधना करनी चाहिए और औषधि का सेवन करना चाहिए।
