
सीता अष्टमी के पर्व पर जानिए पूजा, विधि एवं महत्व
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन कृष्ण अष्टमी की तिथि को हर साल मां सीता के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां सीता धरती पर अवतरित हुई थी इसलिए सीता अष्टमी को उनके जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस साल की सीता अष्टमी का यह पर्व 6 मार्च को मनाया जा रहा है। इसे जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है आइए आज हम आपको बताते हैं कि इस पर्व को कैसे मनाए। कहा जाता है कि फाल्गुन कृष्ण अष्टमी के दिन मिथिला के राजा जनक और रानी सुनैना की गोद में मां सीता आई थी। इसलिए इस दिन को सीता अष्टमी कहा जाता है।

इस पर्व को मनाने के लिए सुबह उठकर स्नान करें साथ ही सीता और भगवान राम की पूजा करें।
दूध, गुड़ से बने व्यंजन बनाए और दान करें।
इस दिन मां सीता की प्रतिमा पर श्रृंगार चढ़ाएं।
शाम को पूजा करने के बाद दूध, गुड़ से बने व्यंजन से ही अपना व्रत खोलें।
माता सीता का विवाह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के साथ हुआ था। विवाह के बाद वह राजा दशरथ की आदर्श बहू और वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम के कर्तव्यों का पालन करती रही। माता सीता एक आदर्श पत्नी के रूप में जानी जाती हैं। बाल्मीकि आश्रम में उनके दो पुत्र लव कुश अच्छे संस्कार के साथ तेजस्वी पुत्र बने हैं। सुहागन महिलाएं के लिए इस दिन व्रत काफी महत्वपूर्ण है। शादी योग्य कन्या भी यह व्रत रख सकती हैं। जिससे आगे चलकर आदर्श पत्नी बन सके।
