
जाने झारखंड के बैद्यनाथ धाम की महिमा के बारे में
Baidyanath Dham - हमारे देश के पावन द्वादश शिवलिंगो में से एक हैं बैद्यनाथ धाम। जिसकी महिमा अपरम्पार हैं। लाखों की संख्या में रोजाना यहाँ भक्त आते हैं। श्रद्धालुओं के मन में इस पावन धाम को लेकर अटूट विश्वास हैं। बता दे आपको बाबा बैधनाथ के इस धाम का सम्बन्ध जुड़ा हैं शिव जी के सबसे बड़े भक्त रावण के साथ। माना जाता हैं कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना रावण के द्वारा ही कि गई। वही इस मंदिर के महंत का कहना हैं कि यहां माता सती के हृदय और भगवान शिव के आत्मलिंग का सम्मिश्रण है। जिस वजह से इस धाम के शिवलिंग में अपार शक्तियों का समावेश हैं।
इस ज्योतिर्लिंग के स्थापना कि मान्यता के अनुसार एक बार रावण भगवान शिव की कठोर तपस्या कर रहा था। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने रावण को दर्शन दिए। लेकिन देवतागणों को हमेशा ही रावण की भक्ति पर संदेह था। इसलिए ब्रह्मा जी ने शिव जी से विनत्ति की जो भी वरदान दे सोच -समझकर ही दे। जब शिव जी ने रावण को दर्शन दिए तो रावण ने वरदान में भगवान शिव को अपने साथ अपनी नगरी चलने को कहा। ताकि उसका पराक्रम और भी अधिक बढ़ जाएं।
शिव जी जाने को तैयार हो गए लेकिन उन्होंने ने रावण के समक्ष एक शर्त रखी और रावण से कहा “हे भक्त मैं तुम्हारे साथ आवश्यक तुम्हारी नगरी चलूँगा। मैं एक लिंग का रूप धारण करके तुम्हारे साथ चलूंगी लेकिन शर्त यही हैं अगर तुमने रस्ते में मुझे कही भी निचे रखा तब मैं वही पर स्थापित हो जाऊंगा। शिव जी की इस शर्त को मानते हुए रावण शिव जी को अपने साथ ले जाने लगा।
देवलोक में बैठे सभी देवताओं की नज़र रावण पर थी देवतागण नहीं चाहते थे कि शिव जी लंका नगरी में स्थापित हो। रास्ते में जाते समय रावण को लघुशंका लगी अब वह विचार में पड़ गया कि आखिर वह करे तो क्या करे। वहा से एक चरवाहा गुजर रहा था। रावण के मन में विचार आया कि क्यों न वह क्षण भर के लिए चरवाहे को शिवलिंग पकड़ाकर। लघुशंका कर आये, फिर चरवाहे को शिवलिंग पकड़ा कर रावण लघुशंका करने को चला गया।
इधर चरवाहे ने उस शिवलिंग को वही जमीन पर रख दिया और शिव जी कि शर्त के अनुसार वह शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गया। जब रावण लघुशंका करके आया तब उसने देखा कि आज चरवाहा वहा नहीं था और शिवलिंग निचे जमीन पर रखा था जिसके बाद रावण ने बहुत प्रयास किया कि वह उस शिवलिंग को दुबारा उठा सके लेकिन वह ऐसा करने में असमर्थ रहा। अंत में थक हारकर शिवलिंग पर अपने अंगूठे का निशान छोड़ कर रावण वहा से चल गया।
रावण के जाने के बाद स्थापित हुए शिवलिंग की पूजा करने के लिए देवलोक से ब्रह्मा ,विष्णु अन्य देवो ने आकर शिव जी की पूजा की। यह ज्योतिर्लिंग ग्यारह अंगुल ऊंचा है। इसके ऊपर अंगूठे के आकार का गड्डा है। कहा जाता है कि यह वहीं निशान है जिसे रावण ने अपने अंगूठे से बनाया था। जिस ज्योतिर्लिंग को रावण अपने साथ लंका ले जाना चाहता था वह आज के समय में झारखण्ड के देवघर में स्थित हैं।
Baidyanath Dham is one of the holy twelfth Shivlings of our country. Whose glory is immeasurable. Lakhs of devotees come here daily.