
Baidyanath Dham भगवान शिव के बैद्यनाथ धाम से जुड़ा अनोखा रहस्य
Baidyanath Dham – बैद्यनाथ धाम देश के पावन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। जिसकी महिमा अपरम्पार हैं। यहाँ पर रोज की संख्यां में लाखों श्रद्धालुगण दर्शन के लिए आते है। बाबा के इस धाम को लेकर श्रद्धालुओं के मन में इस पावन धाम को लेकर अटूट विश्वास हैं। बता दे आपको बाबा बैधनाथ के इस धाम का सम्बन्ध जुड़ा हैं शिव जी के सबसे बड़े भक्त रावण के साथ। माना जाता हैं कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना रावण के द्वारा ही कि गई। वही इस मंदिर के महंत का कहना हैं कि यहां माता सती के हृदय और भगवान शिव के आत्मलिंग का सम्मिश्रण है। जिस वजह से इस धाम के शिवलिंग में अपार शक्तियों का समावेश हैं। आइये सबसे पहले आपको ये बताते है कि कैसे हुई बाबा के इस धाम की स्थापना –
भगवान शिव के बैद्यनाथ धाम से जुड़ा अनोखा रहस्य
Baidyanath Dham बैद्यनाथ धाम की स्थापना कहानी –
इस ज्योतिर्लिंग के स्थापना कि मान्यता के अनुसार एक बार रावण भगवान शिव की कठोर तपस्या कर रहा था। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने रावण को दर्शन दिए। लेकिन देवतागणों को हमेशा ही रावण की भक्ति पर संदेह था। इसलिए ब्रह्मा जी ने शिव जी से विनत्ति की जो भी वरदान दे सोच -समझकर ही दे। जब शिव जी ने रावण को दर्शन दिए तो रावण ने वरदान में भगवान शिव को अपने साथ अपनी नगरी चलने को कहा। ताकि उसका पराक्रम और भी अधिक बढ़ जाएं। शिव जी जाने को तैयार हो गए लेकिन उन्होंने ने रावण के समक्ष एक शर्त रखी और रावण से कहा “हे भक्त मैं तुम्हारे साथ आवश्यक तुम्हारी नगरी चलूँगा। मैं एक लिंग का रूप धारण करके तुम्हारे साथ चलूंगी लेकिन शर्त यही हैं अगर तुमने रस्ते में मुझे कही भी निचे रखा तब मैं वही पर स्थापित हो जाऊंगा।
शिव जी की इस शर्त को मानते हुए रावण शिव जी को अपने साथ ले जाने लगा। देवलोक में बैठे सभी देवताओं की नज़र रावण पर थी देवतागण नहीं चाहते थे कि शिव जी लंका नगरी में स्थापित हो। रास्ते में जाते समय रावण को लघुशंका लगी अब वह विचार में पड़ गया कि आखिर वह करे तो क्या करे। वहा से एक चरवाहा गुजर रहा था। रावण के मन में विचार आया कि क्यों न वह क्षण भर के लिए चरवाहे को शिवलिंग पकड़ाकर। लघुशंका कर आये, फिर चरवाहे को शिवलिंग पकड़ा कर रावण लघुशंका करने को चला गया। इधर चरवाहे ने उस शिवलिंग को वही जमीन पर रख दिया और शिव जी कि शर्त के अनुसार वह शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गया। जब रावण लघुशंका करके आया तब उसने देखा कि आज चरवाहा वहा नहीं था और शिवलिंग निचे जमीन पर रखा था जिसके बाद रावण ने बहुत प्रयास किया कि वह उस शिवलिंग को दुबारा उठा सके लेकिन वह ऐसा करने में असमर्थ रहा। अंत में थक हारकर शिवलिंग पर अपने अंगूठे का निशान छोड़ कर रावण वहा से चल गया। रावण के जाने के बाद स्थापित हुए शिवलिंग की पूजा करने के लिए देवलोक से ब्रह्मा ,विष्णु अन्य देवो ने आकर शिव जी की पूजा की। यह ज्योतिर्लिंग ग्यारह अंगुल ऊंचा है। इसके ऊपर अंगूठे के आकार का गड्डा है। कहा जाता है कि यह वहीं निशान है जिसे रावण ने अपने अंगूठे से बनाया था। जिस ज्योतिर्लिंग को रावण लंका ले जाना चाहता था वह आज के समय में झारखण्ड के देवघर में स्थित हैं।
Baidyanath Dham बैद्यनाथ धाम से जुड़ा रहस्य –
1 शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार ,जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के जब टुकड़े – टुकड़े किये थे तब उनके हृदय का भाग भी यहीं गिरा था। कहते हैं शिव और शक्ति के इस मिलन स्थल पर ज्योतिर्लिंग की स्थापना खुद देवताओं ने की थी। बैद्यनाथ धाम धाम के बारे में कहा जाता है यहां मांगी गई मनोकामना देर में सही लेकिन पूर्ण जरूर होती है। भगवान श्री राम और महाबली हनुमान जी ने श्रावण के महीने में यहां कावड़ यात्रा भी की थी। बैद्यनाथ धाम धाम में स्थित भगवान भोले शंकर का ज्योतिर्लिंग यानी शिवलिंग नीचे की तरफ दबा हुआ है। शिव पुराण और पद्म पुराण के पाताल खंड में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा गाई गई है। मंदिर के निकट एक विशाल तालाब स्थित है। बाबा बैद्यनाथ का मुख्य मंदिर सबसे पुराना है, जिसके आसपास और भी अनेकों अन्य मंदिर बने हुए हैं।
2 इस धाम से जुड़ा एक अन्य रहस्य इस प्रकार है। भोलेनाथ का मंदिर माता पार्वती जी के मंदिर के साथ जुड़ा हुआ है। यहां प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के 2 दिन पूर्व बाबा मंदिर और मां पार्वती और लक्ष्मी नारायण के मंदिर से पंचसूल उतारे जाते हैं। इस दौरान पंचसूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।