
Mahabharata : दुर्योधन के इस भाई ने लड़ा था पांडवो की तरफ से युद्ध
Mahabharata – महाभारत में कौरवो और पांडवो के बीच हुए धर्मयुद्ध की कहानी तो हम सबने सुनी हैं। पांडवो के बड़े भाई कर्ण ने कौरवों की तरफ से युद्ध लडा जिसकी गाथा हर कोई जानता है। लेकिन कौरवो के भी एक भाई ने भी कौरवो को छोड़कर पांडवो की तरफ से जाकर युद्ध में उनका साथ दिया। कौरव जहा केवल अन्याय का काम किया करते थे लेकिन 100 कौरवों में से एक ऐसा कौरव भी था जिसने धर्म का साथ दिया और पांडवो की तरफ से युद्ध में भाग लिया। आज हम आपको अपने लेख के माध्यम से उसी एक कौरव योद्धा के बारे में बताने जा रहे है।
Mahabharata : दुर्योधन के इस भाई ने लड़ा था पांडवो की तरफ से युद्ध
जब कौरवो की माता गांधारी गर्भवती थी। तब धृतराष्ट्र की सेवा आदि कार्य करने के लिए एक वणिक वर्ग की दासी रखी गई थी। धृतराष्ट्र ने उस दासी से ही सहवास कर लिया। सहवास के कारण दासी भी गर्भवती हो गई। उस दासी से एक पुत्र का जन्म हुआ। जिसका नाम युयुत्सु रखा गया। भले ही वह धृतराष्ट्र का पुत्र था और कौरवो का भाई लेकिन युयुत्सु धर्मात्मा था। इसलिए दुर्योधन की अनुचित चेष्टाओं को वह बिलकुल पसन्द नहीं करता था और उसका विरोध भी करता था। इस कारण दुर्योधन और उसके अन्य भाई उसको कभी महत्त्व नहीं देते थे और उसका हास्य भी उड़ाते थे। युयुत्सु ने महाभारत युद्ध रोकने का अपने स्तर पर बहुत प्रयास किया था लेकिन उसकी नहीं चलती थी।
जब महाभारत का युद्ध प्रारंभ हुआ तो पहले युयुत्सु कौरवो कि तरफ ही थे। लेकिन युद्ध से पहले युधिष्ठिर ने घोषणा करते हुए कौरवो की सेना को सुनाया कि “हमारा पक्ष धर्म का जो कोई भी धर्म कि तरफ से लड़ना चाहता हैं वह हमारे पक्ष में आ सकता हैं। युधिष्ठिर कि घोषणा सुनकर कौरवो कि तरफ से केवल एक युयुत्सु ही ऐसे थे पांडवो की सेना में शामिल हुए। युयुत्सु को अपनी तरफ आते देख पांडवो को काफी हर्ष हुआ और उन्होंने युयुत्सु का धन्यवाद भी किया। जब युयुत्सु पांडवो के खेमे में आये। तब युधिष्ठिर ने युयुत्सु को सीधा रणभूमि में नहीं उतारा बल्कि युयुत्सु को एक महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया। युधिष्ठिर जानते थे कि वह इस कार्य में सबसे योग्य है। युधिष्ठिर ने उसकी योग्यता को देखते हुए उसे योद्धाओं के लिए हथियारों और रसद की आपूर्ति व्यवस्था का प्रबंध देखने के लिए नियुक्त किया। पांडवों की 7 अक्षौहिणी यानि कि 9 लाख के आसपास सेना थी। युयुत्सु ने अपने इस दायित्व को बहुत जिम्मेदारी के साथ निभाया और अभावों के बावजूद पांडव पक्ष को हथियारों और रसद की कमी नहीं होने दी। पुराणों के अनुसार उडुपी के राजा को भोजन व्यवस्था सौंपी गई थी।
इसके अलावा आपको बता दे जब युद्ध का समापन हुआ तो ,युद्ध में बच गए 18 योद्धाओं में युयुत्सु भी एक थे। युद्ध के बाद महाराजा युधिष्ठिर ने उन्हें अपना मंत्री बनाया था। जब युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग जाने लगे तब उन्होंने परीक्षित को राजा और युयुत्सु को उनका संरक्षक बना दिया था। धृतराष्ट्र की मृत्यु के बाद युयुत्सु ने ही उन्हें मुखाग्नि दे कर अपने पुत्र धर्म को निभाया।
तो ये थे युयुत्सु ,जो कि कौरवो के भाई थे लेकिन उसके बाद भी इन्होने ने धर्म का साथ देते हुए पांडवो का साथ दिया , न केवल साथ दिया बल्कि उनके लिए अच्छी से अच्छी व्यवस्था का भी प्रबंध किया।
We all have heard the story of the crusade between the Kauravas and the Pandavas in the Mahabharata. The elder brother of Pandavas, Karna fought on the side of Kauravas, whose story is known to everyone.