
Kripacharya कृपाचार्य की माँ से जुड़ा अनोखा रहस्य
Kripacharya - सप्तऋषियों में से एक हैं कृपाचार्य, जिन्हे चिरंजीवी का वरदान प्राप्त हैं। कौरवों के कुलगुरु के रूप में विश्व प्रसिद्द हुए कृपाचार्य। लेकिन कृपाचार्य के जीवन से जुड़े कई ऐसे रहस्य हैं जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। वैसे तो कृपाचार्य का पूरा जीवन ही रहस्य्मय रहा है लेकिन आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से कृपाचार्य Kripacharya की माँ से जुड़ा अनोखा रहस्य बताने जा रहा है। Kripacharya कृपाचार्य की माँ से जुड़ा अनोखा रहस्य कृपाचार्य का जन्म बड़े ही रहस्मई तरीके से हुआ,अमूमन किसी भी बच्चे का जन्म उसकी माता के गर्भ से होता हैं लेकिन कृपाचार्य अपनी माँ की गर्भ से नहीं जन्मे थे। कृपाचार्य के पिता का नाम शरद्वान था। बता दे शरद्वान कोई नहीं बल्कि गौतम ऋषि के पुत्र थे। शरद्वान का जन्म बाणों के साथ ही हुआ था। जिस वजह से उनकी जितनी रूचि बाणों में थी उतनी विद्या ग्रहण करने में नहीं थी। ऋषि के पुत्र होने के बावजूद भी कठोर तप करके शरद्वान ने अस्त्र -शस्त्र प्राप्त किये। शरद्वान के तप और उनके पराक्रम उनकी धनुर्विद्या को देखकर इंद्रदेव भी भयभीत हो गए। एक बार जब शरद्वान तपस्या कर रहे थे तब इंद्रदेव को अपने स्वाभाव के अनुसार एक युक्ति सूझी जैसा कि कई शास्त्रों व पुराणों में वर्णन किए गया हैं कि इंद्रदेव ऋषियों की तपस्या को भंग करने के लिए अप्सराओं का सहारा लेते हैं। ठीक ऐसा ही उन्होंने इस बार भी किया। आइये जानते है आगे की कहानी शरद्वान की तपस्या को भंग करने के लिए इंद्रदेव ने जानपदी नामक एक अप्सरा को शरद्वान की तपस्या में विघ्न डालने के उद्देश्य से भेजा। जब जानपदी शरद्वान के आश्रम पहुंची तो अपने सौंदर्य से शरद्वान को लुभाने का प्रयास करने लगी। क्यों कि वह ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करते थे इसलिए वह बहुत ही संयम थे। संयम से उन्होंने स्वयं पर नियंत्रण तो कर लिया लेकिन कुछ समय के लिए उनके मन में विकार का भाव उत्पन्न हो ही गया। फिर वह उसी स्थान पर अपना धनुष ,बाण और उस अप्सरा को छोड़कर चले गए, पर अनजाने में ही उनका शुक्रपात हो गया और उनका वीर्य सरकंडों पर गिरा था। जिस सरकंडे पर शरद्वान का वीर्य गिरा वह 2 भाग में बंट गया था। सरकंडे के भाग से बालिका का जन्म हुआ दूसरे भाग से बालक का। क्यों कि शरद्वान वहा से जा चुके थे इसलिए उन्हें इस बात कि जानकारी नहीं थी। दोनों नवजात शिशु उसी स्थान पर विलाप कर रहे थे। तभी अचानक हस्तिनापुर के राजा शांतनु वहा शिकार करने के उद्देश्य से आए थे लेकिन जैसे ही उन्होंहे 2 नवजात शिशु को विलाप करते हुए देखा तो उनका मन दया भाव से भर गया। उन नवजात शिशु को ईश्वर का आशीर्वाद समझते हुए वह उन दोनों को अपने साथ हस्तिनापुर ले गए। अब आपको बता दे -यही 2 शिशु कृप और कृपी थे। कृप जो कृपाचार्य के नाम से विख्यात हुए उनकी बहन कृपी जिनका विवाह द्रोणाचार्य के साथ हुआ था। अपने पिता शरद्वान की तरह ही कृपाचार्य धनुर्विधा में सर्वश्रेष्ठ थे ,बढ़ते समय के साथ कौरवों और पांडवो का जन्म हुआ। फिर पितामह भीष्म ने कृपाचार्य को कौरवों और पांडवों की शिक्षा के लिए नियुक्त किया गया। प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त होने के पश्चात पांडवों और कौरवों को अस्त्रों और शस्त्रों की विशेष शिक्षा देने के लिए द्रोणाचार्य को नियुक्त किया गया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य ने कौरवों की ओर से युद्ध किया था और कौरवो के सर्वनाश के बाद कृपाचार्य पांडवों के पास आ गए। बाद में इन्होंने परीक्षित को अस्त्रविद्या सिखाई। श्रीमद्भागवत् पुराण में उल्लेख मिलता है कि मनु के समय कृपाचार्य की गिनती सप्तऋर्षियों में होती थी। अब क्यों कि कृपाचार्य के पिता शरद्वान जानपदी अप्सरा को देखकर कामवासना में डूबे थे। जानपदी को देखने के बाद ही उनका वीर्य सरकंडे पर गिरा इसलिए कृपाचार्य कि माता हुई अप्सरा जानपदी जो कि इंद्र द्वारा भेजी गई अप्सरा थी। तो ये था कृपाचार्य की माँ से जुड़ा अनोखा रहस्य ।

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