
Ramayan lakshman : लक्ष्मण जी से जुड़े अनसुने तथ्य
Ramayan lakshman – त्रेतायुग में अगर विष्णु जी के अवतार श्री राम अपने लक्ष्य को पूरा कर पाएं , एक बार फिर से धर्म पर धर्म की स्थापना कर पाएं तो उसमे कही न कही लक्ष्मण जी Ramayan lakshman का सबसे अहम किरदार रहा है। लक्ष्मण जी ने भगवान श्री राम का हर पथ पर साथ दिया। वनवास जाने से लेकर रावण का वध , श्री राम का राज्य अभिषेक हो लक्ष्मण जी हमेशा से ही लक्ष्मण जी श्री राम की ढाल बनकर रहते है। रामायण के प्रसंग में लक्ष्मण जी का हर पड़ाव पर अहम किरदार रहा है। आज हम अपने इस लेख के माध्यम से लक्ष्मण जी Ramayan lakshman के बारे में जानने का प्रयास करेंगे –
Ramayan lakshman : लक्ष्मण जी से जुड़े अनसुने तथ्य
Ramayan lakshman लक्ष्मण जी का शुरूआती जीवन –
राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। महर्षि ऋष्यश्रृंग ने उन तीनों रानियों को यज्ञ सिद्ध चरू दिए थे जिन्हें खाने से इन चारों कुमारों का आविर्भाव हुआ कौशल्या और कैकेयी द्वारा प्रसाद फल आधा-आधा सुमित्रा को देने से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। कौशल्या से राम और कैकेयी से भरत का जन्म हुआ। भगवान राम से लक्ष्मण बहुत प्रेम रखते थे। लक्ष्मण अपने बड़े भाई श्री राम से बहुत अधिक प्रेम करते थे। उनके भाई ही उनके लिए माता -पिता , भाई, गुरु सब कुछ थे और उनकी आज्ञा का पालन करना ही लक्ष्मण जी का मुख्य धर्म था। लक्ष्मण जी सदैव ही अपने बड़े भाई श्री राम की छाया में रहना पसंद करते थे। बड़े भाई श्रीराम के प्रति किसी के भी अपमानसूचक शब्द को ये कभी बरदाश्त नहीं करते थे। वास्तव में लक्ष्मण का वनवास राम के वनवास से भी अधिक महान है। 14 वर्ष पत्नी से दूर रहकर उन्होंने केवल राम की सेवा को ही अपने जीवन का ध्येय बनाया।
Ramayan lakshman आखिर किसके अवतार थे लक्ष्मण ?
श्री राम को विष्णु जी का अवतार माना गया है वहीं लक्ष्मण को शेषावतार कहा जाता है। हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार शेषनाग के कई अवतारों का उल्लेख मिलता है। जिसमे से मुख्य अवतार लक्ष्मण जी का और बलराम का है।
Ramayan lakshman कौन थे लक्ष्मण जी के गुरु ?
भगवान श्री राम और लक्ष्मण सहित चारों भाइयों के दो गुरु थे- कुलगुरु वशिष्ठ, उन्होंने ही चारों भाई को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी ।बाद में राम व सभी भाइयों ने विश्वामित्र से दिव्यास्त्रों को प्राप्त किया । विश्वामित्र दण्डकारण्य में यज्ञ कर रहे थे। रावण के द्वारा वहां नियुक्त ताड़का, सुबाहु और मारीच जैसे- राक्षस इनके यज्ञ में बार बार बाधा डाल रहे थे। तब ऋषि विश्वामित्र ने यज्ञ की रक्षा के लिए श्री राम और लक्ष्मण को बुलाया। तब श्री राम के साथ मिलकर लक्ष्मण जी ने राक्षसों का वध कर दिया , और विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा हुई। ऋषि विश्वामित्र ने ही श्री राम को अपनी विद्याएं प्रदान की और उनका मिथिला में माता सीता के साथ विवाह करवाया।
Ramayan lakshman किसके साथ हुआ लक्ष्मण जी का विवाह –
लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला राजा जनक की पुत्री थी और सीता माता की बहन उनका विवाह भी राम -सीता के साथ ही हुआ था। इसी के साथ माता सीता की अन्य बहने थे उनका विवाह श्री राम के अन्य भाइयों के साथ करवाया गया। लक्ष्मण और उर्मिला के अंगद और चन्द्रकेतु नाम के दो पुत्र तथा सोमदा नाम की एक एक सुंदर से पुत्री हुई।
लक्ष्मण रेखा क्या थी ?
वेदों के अनुसार एक मनुष्य अपनी योग व ध्यान की शक्ति से ऊर्जा का एक जगह संचार कर सकता हैं। ये शक्ति तब और भी अधिक बढ़ जाती है। जब व्यक्ति पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करता है। अब क्योंकि लक्ष्मण जी 14 वर्षो से अपने भाई और भाभी की सेवा में लगे हुए थे और अपनी पत्नी उर्मिला से दूर थे । जिस वजह से लक्ष्मण जी ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे। इतना ही नहीं वनवास के दौरान लक्ष्मण जी गहन योग व साधना भी किया करते थे। जिस वजह से लक्ष्मण जी के अंदर असीमित ऊर्जा का वास हो गया था। इसी ऊर्जा का उन्होंने लक्ष्मण रेखा खींचने में इस्तेमाल किया था जो इतनी ज्यादा शक्तिशाली थी कि उसे कोई भी लांघने का प्रयास करता तो वह वही भस्म हो जाता। इसी कारण परम प्रतापी होने के पश्चात भी रावण उस लक्ष्मण रेखा को पार नही कर पाया था।
क्यों लक्ष्मण जी को काटनी पड़ी शूर्पणखा की नाक –
अपने वनवास के अंतिम वर्ष में लक्ष्मण श्रीराम व माता सीता के साथ पंचवटी के वनों में रह रहे थे। वहां एक दिन रावण की बहन शूर्पनखा ने श्रीराम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे श्रीराम ने विनम्रता से ठुकरा दिया। इसके बाद वही प्रस्ताव जब शूर्पनखा ने लक्ष्मण के सामने रखा तो उन्होंने उसका उपहास किया। यह देखकर वह माता सीता पर आक्रमण करने के लिए दौड़ी तो लक्ष्मण ने क्रोध में आकर शूर्पनखा की नाक व एक कान काट दिया।
युद्ध में जब मूर्छित हुए लक्ष्मण –
राम-रावण युद्ध के समय मेघनाद के तीर से लक्ष्मण मूर्च्छित होकर गिर पड़े। लक्ष्मण की गहन मूर्च्छा को देखकर सब चिंतित एवं निराश होने लगे। विभीषण ने सबको सांत्वना दी। पुनः युद्ध करते समय रावण ने लक्ष्मण पर शक्ति का प्रहार किया। लक्ष्मण मूर्च्छित है। गए। लक्ष्मण की ऐसी दशा देखकर राम विलाप करने लगे। सुषेण ने कहा- ‘लक्ष्मण के मुंह पर मृत्यु-चिह्न नहीं है अत: आप निश्चिंत रहिए।’ जिसके बाद हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने को भेजा गया और लक्ष्मण जी को पुनः जीवित किया गया।
लक्ष्मण जी का जब धरती पर कार्यकाल हुआ खत्म –
जब श्रीराम का धरती त्यागकर पुनः वैकुण्ठ जाने का समय आ गया तो उनके जाने से पहले लक्ष्मण को वहां भेजना आवश्यक था। एक दिन यमराज ऋषि के भेष में श्रीराम से मिलने आए। तब श्रीराम ने ऋषि के कहेनुसार लक्ष्मण को द्वार पर प्रहरा देने को कहा तथा किसी के भी अंदर आने पर उसे मृत्युदंड देने की घोषणा की। जब लक्ष्मण द्वार पर प्रहरा दे रहे थे तो ऋषि दुर्वासा वहां आ गए व उसी समय श्रीराम से मिलने की जिद्द करने लगे अन्यथा अयोध्या नगरी को अपने श्राप से भस्म करने की चेतावनी देने लगे। इस पर लक्ष्मण ने सोचा कि केवल उनके प्राण दे देने से अयोध्यावासियों के प्राण बच सकते है तो वे अपने प्राण दे देगे। यह सोचकर लक्ष्मण श्रीराम की आज्ञा के विरुद्ध उनके कक्ष में गए व ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना दी। लक्ष्मण को कक्ष में देखते ही यमराज वहां से चले गए व श्रीराम ने अपने आज्ञा की अवहेलना होने पर मंत्रणा बुलायी। उस मंत्रणा में लक्ष्मण को मृत्युदंड दिए जाने की चर्चा हो रही थी कि तभी हनुमान ने लक्ष्मण का त्याग करने का सुझाव दिया। शास्त्रों के अनुसार किसी सज्जन व्यक्ति का त्याग करना उसे मृत्युदंड देने के ही समान होता है, इसलिये यह सुझाव सभी को पसंद आया। फलस्वरूप भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण का हमेशा के लिए त्याग कर दिया।
अपने भाई श्रीराम के द्वारा त्याग किए जाने पर लक्ष्मण को अपने जीने का कोई औचित्य नही दिखाई दिया। इसलिये उन्होंने अयोध्या के निकट सरयू नदी में जाकर समाधि ले ली व वापस अपने धाम वैकुण्ठ लौट गए। उनके जाने के कुछ दिनों के पश्चात ही श्रीराम ने भी उसी नदी में समाधि ले ली व वैकुण्ठ पहुँच गए।