
रावण ने जब पकड़े अंगद के पैर, तो हुआ कुछ ऐसा
Ramayana- रामायण में अक्सर हनुमान जी की वीर गाथा का ही उल्लेख किया जाता हैं। हनुमान जी ने कैसे प्रभु श्री राम की सहायता की और माता सीता को अशोक वाटिका से लेकर आए। आज हम आपको अपने लेख के माध्यम से अंगद के बारे में बताने जा रहे है।
हनुमान जी के अलावा भी रामायण में कई ऐसे महान योद्धा थे जिनकी वजह से श्री राम रावण पर विजय प्राप्त कर पाएं। उन्ही में से एक महाबलशाली योद्धा थे अंगद। अंगद के पास भी कई प्रकार की शक्तियां थी। शक्तिशाली बाली और अप्सरा का तारा के पुत्र थे अंगद ,भले ही श्री राम ने अंगद के पिता बाली का वध किया हो लेकिन बाली अपने अंतिम समय में अपने पुत्र अंगद को सही गलत की सीख देकर गए थे जिस वजह से अंगद ने प्रभु राम का साथ दिया।
बात उस समय की हैं जब प्रभु श्री राम अपनी सेना के साथ लंका पहुंच चुके थे। अब बात आती हैं रावण के पास अपना दूत भेजने की कि आखिर किसे दूत बनाकर भेजा जाए। श्री राम की सभा में उपस्थित सभी लोग हनुमान जी का नाम लेते हैं। हनुमान जी सर्व शक्तिशाली हैं इसलिए उन्हें ही दूत के रूप में भेजना चाहिए।
लेकिन तभी श्रीजामवंत ने प्रभु राम से कहा कि ‘सुनु सर्बग्य सकल उर बासी। बुधि बल तेज धर्म गुन रासी, मंत्र कहउॅ निज मति अनुसारा, दूत पठाइअ बालि कुमारा.’ अथार्त प्रभु इस कार्य के लिए बालिपुत्र को भेजा जाना चाहिए। उनका कहने का अर्थ ये था कि प्रभु राम की सेना में हनुमान ही अकेले बलशाली नहीं है सभी में एक से बढ़कर एक गुण हैं अन्य को भी अवसर दिए जाएं। रावण को भी ऐसा ना लगे की राम की सेना में हनुमान जी ही केवल पराक्रमी हैं। इसलिए अंगद को दूत बनाकर भेजना उत्तम रहेगा।
सभी में उपस्थित सभी लोगो को जामवंत की यह सलाह सभी को अच्छी लगी। प्रभु राम ने सभी की राय पर अंगद को रावण के पास दूत बनाकर भेजा। जब श्री राम दूत बनकर अंगद रावण की सभा में पहुंचे ,तो अंगद के रूप को देखकर रावण अंगद उसका उपहास करने लगा। रावण अंगद से पूछता है कि बंदर कौन है तू, इस पर अंगद कहते हैं कि वे श्रीराम के दूत बनकर आए हैं और समझाने भी। अंगद कहते हैं कि रावण अभी भी समय है प्रभु राम से माफी मांग लो वे तुम्हें कोई सजा नहीं देंगे। अंगद लंकापति रावण को समझाते हुए कहते हैं कि रावण तुमने अच्छे कुल में जन्म लिया है. पुलस्त्य ऋषि के पौत्र हो। भगवान शिव और ब्रह्माजी की पूजा करके तुमने कई तरह के वरदान प्राप्त किए हैं। सभी राजाओं को तुमने जीत लिया है। वे कहते हैं कि तुमने माता सीता का हरण किया है। लेकिन फिर भी मैं तुम्हें सलाह देता हूं कि अगर तुम अपनी गलती स्वीकार कर लो और श्रीराम की शरण में आ जाओ तो वह तुम्हें जरूर ही क्षमा कर देंगे।
लेकिन रावण अंगद की बात को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेता है । फिर से रावण अपनें दरबार मे अंगद का मजाक उडाने लगता है । तब अंगद कहते है कि लंकापति अगर राज्य में कोई भी वीर है तो उनके पैर को जमीन से उठाकर दिखाए । रावण के दरवार में बैठे एक से बढ़कर एक योद्धा बारी बारी से आते गए लेकिन कोई भी उनका पैर रत्तीभर भी हिला न सका । तब रावण का पुत्र इंद्रजीत भी असफल हो जाता है। सभी की कोशिश असफल होने पर पूरे दरवार में सन्नाटा फैल जाता है। इस वाक्या को देखकर रावण को क्रोध आने लगता है ।
सभा मे उपस्थित सभी योद्घा के असफल हो जाने पर स्वयं रावण सिहांसन को छोड़कर अंगद के पैर को उठाने के लिए आगे बढता है। लेकिन जैसे ही रावण अंगद के पैरों को पकड़ने की कोशिश करता है तो तुरंत ही अंगद अपना पैर हटा लेते है । तब अंगद रावण से कहते हैं कि तुम मेरे पांव क्यों पकड़ते हो, पकड़ना ही है तो तीनों लोकों के प्रभु श्रीराम के पैर पकड़ो । उनकी शरण में जाओ तो तुम्हारे प्राण बच जाएंगे अन्यथा युद्घ में बंधु-बांधवों समेत मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे।
अपने प्रभु श्री राम के सम्मान मे अंगद ने रावण की भरी सभा मे रावण का निरादर करना उचित नहीं समझा, और उसे श्री राम के पास जाने की सलाह दी ।
In honor of his Lord Shri Ram, Angad did not consider it appropriate to disrespect Ravana in the gathering of Ravana, and advised him to go to Shri Ram.