
Shanidev ravan katha : किस्सा भगवान शनिदेव और लंकापति रावण का
Shanidev ravan katha – अपने अधर्म के लिए जाना जाने वाला राजा रावण , रावण भले ही सर्व शक्तिशाली था। लेकिन अपने अहंकार की वजह से उसका अंत हो गया। लंकापति रावण के अहंकार के किस्से आखिर किसने नहीं सुने होंगे। देवता भी रावण की शक्ति से भयभीत रहते थे। फिर एक बार ऐसा भी हुआ जब रावण ने क्रोध में आकर कर्मफल दाता शनिदेव का पैर तक काट दिया था, नमस्कार स्वागत है आप सभी का हमारे इस लेख में
Shanidev ravan katha : किस्सा भगवान शनिदेव और लंकापति रावण का
शनिदेव को कर्मफल दाता के नाम से जाना जाता हैं। माना जाता हैं कि शनिदेव मनुष्य को उसके कर्मो का फल देते हैं। शनिदेव के नाम से मनुष्य भयभीत भी बहुत ज्यादा होता हैं क्यों कि अगर शनिदेव का प्रकोप एक बार किसी व्यक्ति पर पड़ जाए तो उसके जीवन में उसे अत्यधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन दूसरी तरफ इस बात को भी कोई नहीं झुठला सकता कि अगर शनिदेव आपसे प्रसन्न हो तो आपका जीवन खुशियों से भर जाता है।
सभी ग्रहो में सबसे सर्वश्रेष्ठ शनिदेव को माना जाता हैं। क्यों कि यह देव भी है और ग्रह, सभी ग्रहो की तरह शनिदेव भी अपनी निरंतर चाल चलते रहते है। लेकिन जहा सभी ग्रह केवल कुछ समय के लिए ही आपकी राशि में गोचर करते है वही शनि देव जब किसी राशि में गोचर करते है तो कम से ढाई या साढ़े साथ साल तक एक ही राशि में टिके रहते है। जिसकी वजह है रावण ,जी हाँ बता दे आपको रावण को शनिदेव पर इतना ज्यादा क्रोध आया कि क्रोध में आकर रावण ने शनिदेव का पैर ही काट दिया। आइये आगे जानते है रावण के क्रोध का कारण –
जैसा कि सभी जानते हैं कि रावण बहुत बड़ा ज्ञानी था। उसी के साथ एक दुनिया का श्रेष्ठ विद्वान् पंडित भी था। रावण कि ये इच्छा थी कि उसका जो भी पुत्र हो वह उससे भी ज्यादा सर्व शक्तिशाली हो साथ ही उसकी दीर्घायु भी हो।
उसके बाद जब रावण की पत्नी मंदोदरी गर्भ से हुई तब रावण ने सोचा उसका जो पुत्र हो वह ऐसे नक्षत्रो में जन्म ले जिस से कि वह उस से भी अधिक बलवान उस से भी अधिक बलवान हो। इसके लिए जब रावण के पुत्र मेघनाथ का जन्म हो रहा था तो रावण ने सभी ग्रहों को ये आदेश दिया कि मेघनाथ के जन्म समय शुभ और सर्वश्रेष्ठ स्थिति में रहने का आदेश दिया । उस समय रावण के भय से सभी ग्रहों ने ठीक वैसा ही किया जैसा रावण ने उसने करने को कहा। सभी ग्रह अपनी शुभ स्थिति में आ गए। लेकिन शनिदेव को रावण कि यह बात बिल्कुल रास नहीं आई क्यों कि शनि देव आयु की रक्षा करते हैं लेकिन रावण जानता था कि शनि देव उसकी बात मानकर शुभ स्थिति में विराजित नहीं होंगे। इसलिए रावण ने अपने बल का प्रयोग करते हुए शनि देव को भी ऐसी स्थिति में रखा, जिससे उसके होने वाले पुत्र की उम्र लंबी हो सके। लेकिन शनिदेव तो ठहरे कर्मफल डाटा भला वह इतना बड़ा अन्याय कैसे होने देते। इसलिए जैसे मेघनाथ के जन्म का समय नज़दीक आया तो उन्होने इस दौरान अपनी दृष्टि वक्री कर ली। जिसकी वजह से मेघनाद अल्पायु हो गया।
फिर जैसे ही इस बात का पता रावण को चला वह काफी क्रोध में आ गया और तब रावण ने क्रोध के आकर अपनी तलवार से शनि के पैर पर प्रहार किया। और उनका एक पैर काट दिया। तभी से शनि देव लंगड़ाकर चलते हैं। इसकी वजह से उनकी चाल भी धीमी हो गई। उनकी धीमी चाल का ही नतीजा हैं कि वह जिस भी राशि में प्रवेश करते हैं वह या तो ढाई साल या फिर साढ़े सात साल रहते हैं। तो ये थी पूरी वजह कि क्यों रावण ने शनिदेव का पैर काटा।