
Shravan kumar parshuram samvad : ऐसे हुआ परशुराम और श्रवण कुमार का मिलन
Shravan kumar parshuram samvad – परशुराम जिन्हे नारायण का अवतार माना गया है। भगवान परशुराम के लिए कहा जाता है कि यह अपने माता -पिता कि सभी बातों का पालन करते थे , एक बार अपने पिता के कहने पर अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया था जिसका बाद में इन्हे बहुत पश्चाताप भी हुआ। फिर घोर तप करके परशुराम ने अपनी माता को जीवित किया। वही दूसरी ओर श्रवण कुमार जिन्हे याद ही उनकी माता -पिता की सेवा के लिए किया जाता है। आज हम आपको अपने लेख के माध्यम से श्रवण कुमार और परशुराम जी Shravan kumar parshuram samvad के बीच हुआ संवाद बताने जा रहे है।
Shravan kumar parshuram samvad : ऐसे हुआ परशुराम और श्रवण कुमार का मिलन
सदियों से ये मान्यता चली आ रही है ” मातृ पितृ देवो भवः ” अर्थार्त माता पिता देवता के सामान है। जो बच्चे अपने माता -पिता को कष्ट देते है उन्हें अपने जीवन में भी कष्ट भोगना पड़ता है। अगर आपने सच्ची सेवा भाव से माता पिता की सेवा कर ली तो आपके जीवन की सभी मुश्किलें हल हो जाएंगी। श्रवण कुमार जिन्होंने अपने अंधे माँ -बाप की पुरे जीवन सेवा की और अंत में अपने कंधो पर दोनों को बैठाकर तीर्थयात्रा पर निकल गए, जहा उनकी मुलाकात परशुराम से हुई।
Shravan kumar parshuram samvad परशुराम और श्रवण कुमार का मिलन
जब श्रवण कुमार के माता -पिता ने तीर्थयात्रा करने की इच्छा जताई तो अपने माता -पिता की आज्ञा का पालन करते हुए श्रवण कुमार ने निर्णय लिया कि वह अपने माता पिता को अपने कंधो पर बैठाकर यात्रा कराएंगे। जब श्रवण कुमार माता पिता को लेकर तीर्थयात्रा पर निकले रास्ते में उनके माता -पिता को प्यास लगी। अपने माता- पिता की प्यास को बुझाने के लिए श्रवण कुमार इधर उधर जल ढूंढने लगे। तब उनकी नज़र एक सरोवर पर पड़ी ,सरोवर को देखते ही वह जल लेने पहुंच गए। वह वहा उस सरोवर से अपने कमंडल में जल भर ही रहे थे कि तभी वह भगवान परशुराम भी आ गए और श्रवण कुमार को से बोले – “हे बालक मैं बहुत प्यासा हूँ कृप्या करके मुझे पानी पीला दो ” श्रवण कुमार परशुराम को देखते ही रह गए।
श्रवण कुमार ने परशुराम से कहा कि आप वेशभूषा से तो मुनिवर लगते है लेकिन आपके हाथों के ये अस्त्र मुझे उलझन में डाल रहे है पर आप जो कोई भी हो लगते तो उच्च कुल के लगते है , इसके बाद परशुराम श्रवण कुमार से कहते है कि मेरे कर्मो को जाने बिना ही केवल मुझे देखकर ही उच्च कुल का सिद्ध कर दिया। आगे श्रवण कहते है कि आप जरूर ही किसी ऋषि के पुत्र होंगे लेकिन मैं ठहरा एक छोटी जाती कि माता का पुत्र। श्रवण कि इन बातों को सुन परशुराम क्रोधित हो उठे बोले -“बालक मां कभी छोटी जाति की नहीं होती है,मां तो मां होती है। कर्मो से व्यक्ति की असली पहचान होती है छोटी जाती उच्च कुल ऐसा कुछ नहीं होता ये समझने के बाद परशुराम ने फिर श्रवण कुमार से पानी पिलाने का आग्रह किया जिसके बाद श्रवण कुमार ने भगवान परशुराम को पानी पिलाया।
इसके बाद श्रवण कुमार ने परशुराम से उनका परिचय माँगा तब श्रवण कुमार को पता चला यह तो खुद भगवान परशुराम है जिनके दर्शन आज उसे हुए है। इसके बाद श्रवण कुमार ने बताया की वह अपने माता-पिता को लेकर तीर्थ यात्रा पर निकले। तब परशुराम कहते है कि मुझे यहाँ कोई रथ या किसी तरह का कोई अन्य वाहन दिखाई नहीं दे रहा है फिर कैसे तीर्थ यात्रा पर जा रहे हो। इस पर श्रवण कुमार ने बताया कि मैं बहुत साधारण परिवार से हूँ मेरे पास रथ आदि की कोई व्यवस्था नहीं थी किन्तु माता पिता की आज्ञा का पालन करना ये मेरे धर्म है जिसके लिए मैं पैदल ही अपने माता -पिता को तीर्थयात्रा कराने के लिए निकल पड़ा हूँ।
श्रवण की इन बातों को सुन परशुराम भावुक हो उठे ओर उनसे अपने माता -पिता से मिलाने के आग्रह किया बोले मैं उन माता -पिता के चरण स्पर्श करना चाहूंगा जिन्होंने तुम जैसे संतान को जन्म दिया है। भगवान परशुराम ने श्रवण के माता पिता के चरण स्पर्श किया। श्रवण के माता पिता को जब ज्ञात हुआ कि स्वयं भगवान परशुराम आये हैं। अत्यन्त गद-गद हुए। भगवान परशुराम ने श्रवण कुमार को आशीर्वाद दिया कि यात्रा मंगलमय हो व जब तक संसार रहेगा तेरा नाम अमर रहेगा।
तब से लेकर आज तक श्रवण कुमार का नाम अमर है। आज भी लोग बड़े ही सम्मान के साथ श्रवण कुमार की माता -पिता की भक्ति भाव को याद करते है।