
कौन थी स्वयंप्रभा ? रामायण से जुड़ा अनोखा रहस्य
swayamprabha स्वयंप्रभा रामायण की ऐसी जादूगरनी जिसे कोई नहीं जनता , यू तो रामायण में कई राक्षसों, वानरों ,दानवों का ज़िक्र किया गया हैं। लेकिन रामायण की बारीकियों में जाने के बाद कई ऐसे पात्र ऐसे तथ्य निकलकर सामने आते हैं। जिन्होंने माँ सीता को अशोक वाटिका से वापस लाने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन उनके द्वारा की गई मदद का उल्लेख विस्तार पूर्वक नहीं किया गया। ऐसी ही रामायण में एक जादूगनी थी स्वयंप्रभा swayamprabha , जिसने सीता माता की खोज में निकले हनुमान जी की सहायता की , आज हम आपको अपने लेख के माध्यम से स्वयंप्रभा swayamprabha के बारे में बताने जा रहे है।
swayamprabha कौन थी स्वयंप्रभा ? रामायण से जुड़ा अनोखा रहस्य
रामायण में जब श्री राम का आदेश प्राप्त कर हनुमान जी ,अंगद ,जामवंत सहित कई वानर माँ सीता की खोज में निकले। कई दिनों तक हनुमान जी ने अपनी खोज को जारी रखा लेकिन माँ सीता से जुडी कोई खबर उन्हें नहीं मिल पा रही थी। जिस वजह से सभी हताश होने लगे। इधर कई दिनों तक भूखे प्यासे रहने के बाद हनुमान अंगद सभी के प्राण कंठ में आ गए। आगे के कार्य को सफल बनाने के लिए और खुद को जीवित रखने के लिए कुछ खाना जरूरी हो गया था। तब वानरों की दृष्टि एक गुफा पर पड़ी। अपने तीव्र वेग के साथ हनुमान जी सहित सभी वानर उस गुफा में प्रवेश कर गए। ये इच्छा लेकर की शायद यहाँ उन्हें खाने को कुछ नसीब हो सके। गुफा के भीतर जाके उन्होंने देखा कि वह स्थान अत्यन्त उत्तम, प्रकाशमान और मनोहर था। चारों ओर साल, ताल, तमाल, नागकेसर, अशोक, धव, चम्पा, कनेर आदि के पुष्पयुक्त वृक्ष दिखाई दे रहे थे। उनसे अग्नि के समान प्रभा निकल रही थी और उनके फल फूल भी सुनहरे रंग के थे। इन वृक्षों में लगे मूँगे और मणियों के समान चमकीले फूलों और फलों पर सुनहरे रंग के भौंरे मंडरा रहे थे। अत्यंत पावन दृश्य को देखकर सभी वानर आश्चर्यचकित रह गए।
गुफा में आगे बढ़ने के बाद हनुमान जी को एक स्त्री दिखा दी जिसका मुख तपस्या के तेज से दमक रहा था। स्त्री को देखते ही परम बुद्धिमान हनुमान जी तपस्विनी के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए और देवी से पूछा ” हे देवि! आप कौन हैं? यह गुफा, ये भवन तथा ये रत्नादि किसके हैं? हे देवि! हम लोग भूख-प्यास और थकावट से व्याकुल होकर जल मिलने की आशा से इस गुफा में चले आये हैं। लेकिन इस गुफा को देखकर हम दंग रह गए हैं क्या ये गुफा आपकी आसुरी माया की वजह से ऐसी हैं। तपस्विनी ने इस पर जवाब दिया कि पहले आप सभी भोजन ग्रहण कर ले , उन सभी को तपस्विनी शुद्ध भोजन, फल-मूल आदि दिया। फिर जब सभी वानर भोजन से तृप्त हो गए तब तपस्विनी ने उन्हें अपना परिचय दिया। जिनका नाम स्वयंप्रभा था। “स्वयंप्रभा ” ने बताया कि इस वन का निर्माण मय नाम के मायावी ने अपनी माया के प्रभाव से किया था। मय एक दानव था जिसका मन माया नाम की एक अप्सरा पर आ गया था। तब मय ने माया अप्सरा को पाने के लिए देव इंद्र से युद्ध किया जिसमे देव इंद्र ने उसका वध कर डाला। उसके वध के पश्चात इस सुंदर वन की रक्षा करने का उत्तरदायित्व भगवान ब्रह्मा ने हेमा को सौपा था। बाद में हेमा ने इसका दायित्व माँ स्वयंप्रभा को दिया।
उसके बाद से मैं ही इस वन की सुरक्षा कर रही हूँ। अब तुम लोग बताओ कि तुम लोग किस प्रयोजन से घूम रहे हो?” हनुमान, जाम्बवंत ने अपना परिचय दिया व यहाँ आने का औचित्य बताया कि दशरथनन्दन श्री राम अपनी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ दण्डकारण्य में निवास कर रहे थे। लेकिन रावण ने छल पूर्वक माता सीता का हरण कर लिया। श्री राम वानरराज सुग्रीव के मित्र हैं। हम लोग अपने राजा सुग्रीव की आज्ञा से जानकी जी की खोज कर रहे हैं। हमें इस गुफा से बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा है। अब आप हमे इस गुफा से बहार निकले में हमारी सहायता करे ताकि हम अपने कर्तव्य को पूरा कर सके। इस पर स्वयंप्रभा ने कहा जो कोई भी एक बार इस गुफा में आ जाता हैं वह इस गुफा से बहार नहीं निकल पाता हैं। किन्तु मैं अपने तप के प्रभाव से तुम सब को यहाँ से बाहर निकाल दूँगी। तुम सभी अपनी आँखें बंद कर लो।”
वानरों के आँख मूँदते ही स्वयंप्रभा ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उन्हें गुफा से बाहर निकाल कर कहा, “अब तुम अपनी आँखें खोल लो। यह देखो तुम्हारे समक्ष महासागर लहरा रहा है। तुम्हारा कल्याण हो।” स्वयंप्रभा कि वजह से ही हनुमान अपने पड़ाव में आगे बढ़ सके। और समुद्र तट तक पहुंच पाएं। तो ये थी रामायण की एक अहम पात्र स्वयंप्रभा।