
Vaishno Devi Mandir : जीवन में एक बार जरूर जाए वैष्णों देवी , जाने क्या है इस जगह की मान्यता
Vaishno Devi Mandir – जम्मू में स्थित त्रिकूट पर्वत पर मां वैष्णो का स्थान है। मान्यता है मां के दर्शन का सौभाग्य केवल उन्हीं को मिलता है, उन्हें मां का बुलावा आता है। वह भक्त भाग्यशाली कहलाते हैं। मां वैष्णो देवी की महिमा उन पर सदा बनी रहती है। वैसे तो पूरे वर्ष माँ का दरबार भक्तों से खाली नही रहता है, लेकिन नवरात्रि के समय यहाँ कुछ और मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की तादात देखने को मिलती है।
Vaishno Devi Mandir : जीवन में एक बार जरूर जाए वैष्णों देवी , जाने क्या है इस जगह की मान्यता
कुछ टाइम के लिए मां के दर्शन कर पाना भी मुश्किल सा लगने लग जाता है। मान्यता है कि नवरात्रि के पावन अवसर पर जो लोग मां वैष्णो देवी के मंदिर के दर्शन करते हैं, उनकी हर मनोकामना मां करती है। वैष्णो देवी के मंदिर में पिंडियों के रूप में देवी लक्ष्मी, देवी काली और देवी सरस्वती विराजमान हैं। त्रिकूट पर्वत पर पिंडी के रूप में विराजमान मां की क्या है पौराणिक कथा
वैष्णों देवी की मान्यता –
जम्मू कश्मीर के कटरा में स्थित माँ वैष्णों देवी का मंदिर पुरे विश्व में ही प्रसिद्द है। इस मंदिर को लेकर मान्यता कहती है कि कटरा से 2 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हंसाली गाँव में माँ वैष्णवी के परम भक्त जिनका नाम श्रीधर है वह निवास करते है। वह निसंतान होने से बहुत दुखी थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को आमन्त्रित किया। माता वैष्णो भी कन्या के रूप में उन्हीं के बीच में बैठी हुई थीं।
जब पूजा खत्म हो गई उसके बाद सभी कन्याएं वापस अपने घर को चली गई। लेकिन माता वैष्णों वही रुकी रही और श्रीधर से कहती है अपने घर भंडारे के लिए सभी को निमंत्रण देकर आओ। श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आसपास के गांवों में भंडारे का निमंत्रण पहुंचा दिया।
अपने गाँव में निमंत्रण देकर जब वह से लौटते समय गोरखनाथ और उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ दूसरे शिष्यों को भी भंडारे के लिए आमंत्रित कर दिया। जैसे ही भोजन का निमंत्रण मिला सभी गांव वासी चकित थे कि वह कौन सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना को बोल रही है।
निमंत्रण मिलने पर सभी गाँव वाले लोग भंडारे के लिए एकत्रित हो गए तभ कन्या के रूप में माँ वैष्णों देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू कर दिया। भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई तो भैरवनाथ ने खीर पूरी के स्थान पर, मांस और मदिरा को परोसने कहा। कन्या ने उन्हें खाना देने से इनकार कर दिया। हालांकि भैरवनाथ अपनी मांग पर अड़ा रहा।
भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब माता ने उसके कपट को पहचान लिया। कन्या का रूप बदलकर माता त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली भैरवनाथ से छिपकर इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश किया और नौ महीने तक उस गुफा में तपस्या की। यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या गर्भजून के नाम से पहचानी जाती है। इस गुफा का उतनई ही महिमा है जितना भवन की 9 महीने बाद कन्या ने गुफा से बाहर आकर देवी का रूप धारण किया।
माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस लौट जाने को कहा लेकिन जब वो नहीं माना तो वैष्णवी माता ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। माता के हाथों संहार होने के बाद भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस जगह को आज भैरोनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस जगह पर मां वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान भवन के नाम से पहचानी जाती है।